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Books Written By Swami ji

"I never write a single word.
I write what GOD has dictated me
 and wants me to Draw" ...Sadaiv


ओशो से संबंधित पुस्तकें 

 

ओशो की जीवन यात्रा 

 ओशो की देशनाएं, दर्शन व ध्यान विधियां आदि तो अद्भुत हैं ही, पर उनका जीवन भी अपने आप में अद्भुत और अद्वितीय है। उनके जीवन की घटनाएं भी हमें प्रेरित व रूपांतरित करने वाली हैं। ओशो का जीवन कितना निराला है तथा किस तरह हमें आम से खास इंसान बनने की, भीतर छिपे बुद्घत्व को प्रकट करने की कला सिखाता है, यह जानना भी अति आावश्यक है। इस पुस्तक का उद्देश्य यही है कि हम न केवल ओशो के गरिमापूर्ण जीवन को जानें बल्कि उनके जीवन से प्रभावित होकर अपने भीतर की छिपी संभावना व प्रतिभा को पंख दें।

ओशो आज भी विवादित हैं क्योंकि लोग उनके जीवन से जुड़ी आधी-अधूरी व गलत जानकारियों को और भी नकारात्मक ढंग से प्रस्तुत करते हैं तो, कोई उसमें कुछ भी जमा-घटा करके कुछ का कुछ बना देता है। ऐसी कोई पुस्तक, विशेषकर हिन्दी में नहीं है जो ओशो के जीवन की विस्तृत जानकारी देती हो, लेकिन इस पुस्तक पर भरोसा किया जा सकता है, क्योंकि यह पुस्तक उन सब प्रेमियों, संन्यासियों, घर-परिवार वालों की है जो ओशो के निकट रहे हैं, व उनके सहयोगी रहे हैं। जिनकी आंखों में ओशो ने प्रत्यक्ष झांका है। उनकी झांकी है यह पुस्तक। 

विशेष :- यह पुस्तक प्रभाकर प्रकाशन द्वारा प्रकाशित है
इस पुस्तक को मंगवाने के लिए - 9891240767, 8512080202 पर कॉल करें
यह पुस्तक ऑनलाइन भी उपलब्ध है

ओशो का इस जगत को योगदान

ओशो का योगदान इतना गहन और विस्तृत है कि उनके योगदान को किसी धर्म, देश, लिंग या उम्र में सीमित नहीं किया जा सकता। अपने साहित्य के रूप में जो उन्होंने पीछे रख छोड़ा है वह उन्हें सदा आगे रखता रहेगा। ओशो भविष्य के मनुष्य हैं, उन्होंने वह सब दे दिया है जिसकी आने वाले युगों में भी आवश्यकता रहेगी। ओशो का योगदान किसी व्यक्ति विशेष के लिए नहीं है। उनका व्यक्तित्व बहुआयामी है, इसलिए वह सभी संभावनाओं का आरंभ भी है और अंत भी। उन्होंने मनुष्य के जगत को क्या दिया इसके लिए उनके हर आयाम को जीना और समझना पड़ेगा, पर हर इंसान ने उन्हें व उनके योगदान को अपने नजरिए से सीमित कर रखा है। ओशो उनके आंगन से टुकड़ा भर दिखने वाले आकाश का नाम नहीं है।ओशो आकाश की तरह हैं, जिसे जहां से, जितना भी देखो उसके बावजूद भी वह कई गुना रह जाते हैं। यह पुस्तक ओशो के विभिन्न क्षत्रों दिए गए योगदान को टुकड़े-टुकड़े में देखने का नहीं उन्हें पूरा साबुत दिखाने का प्रयास है।

विशेष :- यह पुस्तक प्रभाकर प्रकाशन द्वारा प्रकाशित है 
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ओशो के बाद का विवाद

ओशो के जाने के बाद ऐसे कई विवाद हैं जिनसे ओशो संन्यासी भी परेशान हैं। उन्हें खुद नहीं पता कि इतने विवाद क्यों हैं, इसलिए जब कोई मित्र उनसे इन विवादों के बारे में पूछता है तो उनके पास उनकी कोई सही व ठोस जानकारी नहीं होती। यह पुस्तक उन्हें उन विवादों की बारीकियों से परिचित करवाती है। जैसे, ओशो की मृत्यु प्राकृति मृत्यु नहीं थी, ओशो ने अपनी पुस्तकों का कॉपीराइट करवा रखा था, ओशो नाम अब एक ट्रेडमार्क हो गया है जिसे कोई और प्रयोग नहीं कर सकता, पूना में स्थित ओशो कम्यून के आए अनेकों परिवर्तन गैरकानूनी एवं मनगढंत हैं। एक तरफ इन विषयों पर विवाद है तो कहीं उन लोगों के कारण विवाद हैं जो ओशो की देशनाओं एवं निर्देशित ध्यान विधियों तथा आश्रम व्यवस्था को ठीक उसके विपरीत कर रहे हैं। कौन मिलावटी है, तो कौन दिखावटी। कौन ओशो को बेच रहा है तो कौन ओशो को बचा रहा है? सब कुछ इस पुस्तक को पढ़कर स्पष्टï हो जाता है। 

विशेष :- यह पुस्तक प्रभाकर प्रकाशन द्वारा प्रकाशित है 
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 ओशो पर लगे आरोप और उनकी सच्चाई

ओशो प्रेमियों एवं संन्यासियों को अलग रखकर बात करें तो अधिकतर लोगों की नजर में ओशो एक व्यक्ति का ही नाम है जो 80 के दशक में आध्यात्मिक गुरु के रूप में उभरा कम था बल्कि विवादों एवं आरोपों में घिरा अधिक था। दुर्भाग्य से ऐसा मानने व सोचने वालों की संख्या ज्यादा है। यह पुस्तक इसी बात को ध्यान में रखकर लिखी गई है। जहां एक ओर यह पुस्तक ओशो पर लगे तमाम आरोपों को सुलझाती है वहीं इस बात को भी रेखांकित करती है कि 'आखिर ओशो को गलत समझा क्यों गया?' साथ ही बड़ी ईमानदारी के साथ प्रश्न उठाती है कि 'क्या ओशो के अपने संन्यासी भी ओशो को समझ पाए हैं या नहीं?' ऐसे में यह विषय और भी गम्भीर और महत्त्वपूर्ण हो जाता है और मांग करने लगता है एक ऐसी किताब की जो इन सब सवालों व आरोपों पर निष्पक्ष होकर प्रकाश डाले ताकि ओशो की वास्तविक व सच्ची छवि उभर सके और ओशो बिना किसी गलत धारणा व विवाद के सीधे -सीधे समझ में आ सकें। 

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प्रसिद्ध हस्तियों और बुद्धिजीवियों की नज़र में ओशो

हालांकि यह बात कोई मायने नहीं रखती कि लोगों की नज़र में ओशो कौन हैं। स्वयं ओशो ने भी इस बात की कभी परवाह नहीं की, कि लोग उनके बारे में क्या सोचते हैं। सच तो यह है कि ओशो को किसी प्रमाण की आवश्यकता नहीं है, न ही वह मोहताज हैं किसी भीड़ या समर्थन के। पर एक समाज है, जो अपने अलावा सबकी खबर रखता है, जो निरंतर भीतर नहीं, बाहर झांकता रहता है। जो अपनी संकुचित बुद्धि से अंदाजे लगाता रहता है और गढ़ता रहता है अधूरेपन से एक पूरी तस्वीर। न केवल स्वयं भटकता है बल्कि दूसरों को भी गुमराह करता है। जिसका नतीजा यह होता है कि ओशो जैसा संबुद्ध रहस्यदर्शी सद्गुरु, एक सेक्स गुरु या अमीरों का ही गुरु बनकर रह जाता है। जबकि सच तो यह है कि जिसने भी ओशो को पढ़ा है, सुना है या ओशो के आश्रमों में गया है वह चमत्कृत हुआ है। ओशो के प्रति न केवल उसकी सोच बदली है बल्कि उसका स्वयं का जीवन भी रूपांतरित हुआ है।
यह पुस्तक प्रमाण है की ओशो ने कितनों को झंकृत किया है। ओशो उन बुद्धिजीविओं और प्रसिद्ध हस्तियों के प्रेरणा स्रोत व प्रिय रहे हैं जिनकी दुनिया दीवानी है। ओशो को किस कदर, किस कद के लोग, किस हद तक चाहते हैं, आप इस पुस्तक से पढ़कर अंदाज़ा लगा सकते हैं, जबकि यह पुस्तक अपने आप में महज़ ट्रेलर भर है। क्योंकि गुप्त रूप से ओशो को चाहने और चुराने वालों की फेहरिस्त बहुत लम्बी है जो न केवल ओशो को पढ़ते- सुनते हैं बल्कि अपनी सहूलियत एवं जरूरत अनुसार कट-पेस्ट भी करते हैं, परन्तु मानने से हिचकिचाते हैं कि वो ओशो ही हैं जिससे यह दुनिया सम्मानित हुई है, दुनिया के इतने सम्मानित लोग सम्मानित हुए हैं।

विशेष :- यह पुस्तक डायमंड पॉकेट बुक्स द्वारा प्रकाशित है 
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कौन है ओशो 

कौन है ओशो? यह सवाल आज भी लाखों लोगों के मन में उठता है/  कोई ओशो को संत सदगुरु  के नाम से जानता है तो कोई भगवान के नाम से/ किसी के लिए ओशो महज एक दार्शनिक हैं तो किसी के लिए विचारक/ किसी के लिए शक्ति हैं तो किसी के लिए व्यक्ति/ कोई इन्हें संबुध्द रहश्यदर्शी के नाम से संबोधित करता है तो किसी की नज़र में ओशो एक सेक्स गुरु  का नाम है/ स्वीकार और इनकार के बीच, प्रेम और घ्रणा के बीच ओशो ऐसे निखर कर आयें हैं जैसे मथनी से मक्खन/ इतने कष्ट, संघर्ष, विवाद एवं यातनाओं के बाद भी ओशो खूब उभरे हैं/ यह खासियत लोगों में एक ओर जिज्ञासा पैदा करती है तो दूसरी ओर उन्हें हैरत में भी डालती है/
ओशो इस युग के सबसे रहस्यमयी व विवादास्पद गुरु रहें हैं, क्यों घिरे ओशो विवादों में?, यातनाएं जो ओशो ने सही, क्यों लगा ओशो पर सेक्स गुरु का ठप्पा?, क्या है पुस्तक सम्भोग से समाधि की ओर में?, ओशो का इस जगत को योगदान, विद्वान एवं विख्यात लोगों की नज़र में ओशो, लोग जिनका ओशो के जीवन में विशेष योगदान रहा, आत्म रूपांतरण एवं ध्यान की सरल ६५ विधियाँ, क्या है ओशो कम्यून और रजनीशपुरम की हकीकत?, क्यों आये ओशो और क्या था उनका उद्देश्य? आदि जानें एस पुस्तक से/ 

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मैं क्यों  आया था ?

यूँ तो ओशो को वर्षों से पढ़ा व ना सुजा रहा है पर समझा कितना गया है, येसोचने वाली बात है। ओशो क्यों आये तथा इस जगत के लिए क्या कर गएऔर क्या कह गए, उन्हें सही अर्थों में जानना व समझना अभी भी शेष है। यहपुस्तक ओशो की सच्ची और वास्तविक छवि के साथ- साथ अध्यात्म जगत मेंउनके दिए गए योगदान को भी बखूबी स्पष्ट करती है। पुस्तक के अंतिम खंड में शशिकांत नेओशो को एक 'संक्रामक रोग' कहकर संबोधित किया है तथा यह भी कहा हैकि 'ओशो समझने के लिए नहीं हैं', पर जिन अर्थों में कहा है वह उल्लेखनीय हैतथा पाठक में पढने की जिज्ञासा पैदा करते हैं। कुल मिलकर कहा जा सकताहै कि ओशो को जानने, समझने व जन- जन तक पहुँचाने के उद्देश्य से रचीगयी यह पुस्तक वास्तव में सराहनीय है।

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 सामाजिक एवं समसामयिक विषयों पर पुस्तकें 


कुल का कल हैं बेटियां

कहने को भले ही आज हमारे देश ने खूब तरक्की कर ली हो, परन्तु फिर भी देश के बहुत बड़े हिस्से में, बेटियों को लेकर उनकी मानसिकता बहुत संकीर्ण है। जहां बेटों के जन्म पर खुशियां मनाई जाती हैं वहीं आज भी बेटी पैदा होने पर चेहरे बुझ जाते हैं। बेटियों को बोझ व सिरदर्दी ही समझता है। कहने को तो इस देश में बेटियों को देवी रूप में पूजने की परंपरा है पर वहीं आज उनकी तस्करी करने वालों की भी कमी नहीं है। आज भी परंपराओं एवं दकियानूसी विचारों के कारण बेटियां सुरक्षित नहीं हैं, या तो जन्म से पहले ही उन्हें गर्भ में मार दिया जाता है या फिर जन्म के बाद वह पूरी उम्र लिंगभेद के साथ-साथ पारिवारिक एवं सामाजिक शोषण तथा हिंसा का शिकार होती हैं। शायद यही कारण है कि आज आजादी के सात दशकों के बाद भी हमें 'बेटी बचाओं, बेटी पढ़ाओं' जैसी योजना को लाना पड़ा है। 
बेटा यदि कुल का दीपक है तो बेटियां कुल की लौ हैं। लौ के बिना दीपक, मिट्टी का मात्र बर्तन भर है। लौ से ही प्रकाश उठता है और अंधकार मिटता है इसलिए यदि हमें अपनी जीवन में प्रकाश चाहिए तो हमें दोनों को स्वीकारना होगा। इतिहास गवाह है, कि भले ही हर युग ने बेटी को बेटे से कम आंका हो, परंतु बेटियां सदा से परिवार एवं समाज की मदद करती आईं हैं। उसने कभी पुत्री, तो कभी मां, बहन एवं पत्नी बनकर स्वयं को प्रमाणित किया है। वह धरती पर बोझ नहीं परमात्मा का वरदान है, ईश्वर द्वारा बनाई गई सबसे प्यारी कृति है।

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गाय, गंगा और गौरी - है हमारी जिम्मेदारी 

गाय का संबंध मात्र दूध, दही एवं घी-मक्खन आदि से ही नहीं है, गाय अपने आप में एक जीता जागता औषधालय है। ऐसे ही गंगा, पानी का ही स्रोत नहीं है हमारी संस्कृति एवं सभ्यता का भी स्रोत है। इसके तटों पर हमारे संस्कार जन्में हैं, तो इसके घाटों पर हमारे त्योहार पनपे हैं। और गौरी (कन्या)मां का बीज रूप है। मां का स्थान जीवन में सबसे ऊपर है, यदि हमें परिवार, संस्कार और संबंधों को बचाना है तो हमें गौरी को बचाना होगा। यह पुस्तक न केवल हमें इन तीनों के प्रति संवेदनशील होना सिखाती है बल्कि इन तीनों का हमारे जीवन में क्या व कितना महत्त्व और योगदान है वह भी समझाती है। साथ ही इन तीनों को कैसे बचाया जाए, क्या है सम्बंधित नियम, कानून, व्यवस्थाएं और उपाय सबके बारे में विस्तृत जानकारी भी देती है।

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नई स्त्री की पुरानी कहानी 

बिस्तर से दफ्तर तक, हृदय से आसमान तक और चुप्पी से नारेबाजी तक का सफर तय करने वाली स्त्री आज भी सोचने, विचारने और स्त्री दिवस मनाने का ही नाम बनकर रह गई है। जहां एक ओर स्त्री विमर्श पर ढेरों किताबें लिखी जा रही हैं वहीं दूसरी ओर महिला दिवस का विज्ञापन अखबारों में अपनी जगह ढूंढने का वर्षभर इंतजार करता रहता है। तब किसी समाज को, देश को खबर लगती है कि स्त्री का भी मत है, उसका भी मन है, उसकी भी आकांक्षाएं हैं, उसको भी सम्मानित करना है। यह पुस्तक स्त्री की सामाजिक व मानसिक दशा में आय परिवर्तनों को रेखांकित करती है तो, वैदिक युग से वैज्ञानिक युग तक की उसकी यात्रा को भी दर्शाती है। इतना ही नहीं यह पुस्तक स्त्री के वास्तविक रूप को उसकी क्षमताओं, सीमाओं और संभावनाओं के साथ उकेरती है।

विशेष :- यह पुस्तक प्रभाकर प्रकाशन द्वारा प्रकाशित है 
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 धर्म एवं अध्यात्म संबंधी पुस्तकें 

कौन है  गुरु ? 

जहां एक ओर साधु-संत अपने ध्यान एवं ज्ञान के कारण जाने-माने जाते हैं तो वहीं दूसरी ओर इनके छिछले चमत्कार व बड़बोलापन इन्हें चर्चा एवं विवादों में घेरे रखता है .गुरुओं के फैलते बाजार और उनकी बिगड़ती छवि में कैसे पहचानें असली गुरु को? जानने के लिए पढ़ें शशिकांत 'सदैव' की पुस्तक 'कौन है गुरु?' यह पुस्तक न केवल सच्चे व असली गुरु की पहचान बताती है बल्कि गुरुओं की गुरु गिरी एवं उनकी चलती दुकानों का अच्छा-खासा खुलासा भी करती है। साथ ही कौन है गुरु? क्यों जरूरी है गुरु? कैसे बनते हैं गुरु? कैसे फैलता है इनका बाजार? भगवान को मानें या गुरु को, कौन बड़ा है कौन जरूरी? क्या गुरु भगवान से मिला सकता है? असली गुरु की पहचान क्या है? क्या किसी को गुरु बनाना आवश्यक है? क्या बिना देहधारी गुरु के मुक्ति असंभव है? क्यों नहीं फलता गुरु? क्या गुरु को भी गुस्सा आता है? क्या शिष्य भी कभी गुरु से आगे निकल सकता है? योग्य शिष्य की पहचान व लक्षण क्या है? क्या आजकल के गुरु बाजारू हो गए हैं? आदि ऐसे 41 प्रश्नों को हल करती है यह पुस्तक

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गुरु का महत्त्व 

भारत में गुरु शिष्य-परंपरा सदियों नहीं, युगों पुरानी है, जो आज तक कायम है। गुरु हमेशा से सफल व्यक्तित्व, परिवार, समाज और राष्ट्र की नीव और रीढ़, दोनों रहा है। आज भले ही कुछ ढोंगी बाबाओं के चलते गुरु -संतों को शक की दृष्टि से देखा जा रहा है परन्तु इससे जीवन में गुरु के महत्त्व और उनके योगदान को कम नहीं किया जा सकता, पर ऐसे में कई सवाल अवश्य उठते हैं, जैसे -गुरु कौन है? क्यों आवश्यक है गुरु ?, क्या पहचान है असली गुरु की ? क्या है असली शिष्य के लक्षण, आदि? यह पुस्तक आपको विश्व प्रसिद्ध 45 आध्यात्मिक गुरुओं के माध्यम से यह जानने में मदद तो करती ही है साथ ही जिन्हें आप गुरु रूप में पूजते व मानते हैं उनकी स्वयं की दृष्टि में गुरु कौन है तथा कैसे थे उनके अपने गुरु के साथ सम्बन्ध ?, इस विषय पर भी प्रकाश डालती है।

विशेष :- यह पुस्तक प्रभात प्रकाशन द्वारा प्रकाशित है 
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आधुनिक संतों की आध्यात्मिक यात्रा

जीवन किसी इंसान का हो या किसी चीटी का, सर पर बोझा ढ़ोने वाले किसी मजदूर का हो या बगीचे में खिलने वाले किसी फूल का/ प्रेरणा किसी से भी कभी भी कहीं भी ली जा सकती है / रूपांतरित किसी से भी , कैसे भी हुआ जा सकता है/ ऐसे  में संतों कि खासतोर पर आधुनिक संतों कि जीवनी एवं उनकी जीवन यात्रा अपनेआप में विशेष स्थान रखती  है क्योंकि वह जितनी बाहरी  होती  है उतनी ही भीतरी भी होती है/ जितनी व्यावहारिक होती  है उतनी ही आध्यात्मिक भी होती है/ संतों का जीवन एक आम आदमी के लिए किसी विश्वनिद्यालय से कम नहीं होता / उनका एक वाक्य ग्रन्थ सामान होता है जो हमें प्रेरित कर हमारे लिए मार्गदर्शक का कार्य करता है / हमें सफलता के साथ - साथ आत्मजागरण का सूत्र भी सिखाता है/ और   भारत की भूमि तो संतों की भूमि रही है/ संतों का व्यक्तित्व व उनकी आध्यात्मिक यात्रा लोगों  के लिए सदा आकर्षण का केंद्र रही है/ वह संत एवं गुरु जिन्हें आप किताबों व टीवी आदि के माध्यम से पढ़ते सुनते रहें हैं, जिनकी तस्वीरों को देखते व चूमते रहें हैं इस पुस्तक के माध्यम से आप उनके व्यकित्व एवं कृतित्व को और भी नजदीक से जान व समझ पायेंगे तथा उनके रहस्यमयी जीवन से प्रेरणा ले पायेंगें /

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ध्यान एक मात्र समाधान ( जानें विश्व प्रसिद्ध गुरुओं से )

आज लोग ध्यान को जीवन की मूल आवश्यकता की तरह रोज अपने जीवन में शामिल कर रहे हैं या करना चाहते हैं। इससे होने वाले लाभों के कारण न केवल भारतीय बल्कि विश्व के अन्य देश भी इसको अपनी दिनचर्या में शामिल कर रहे हैं।
इस पुस्तक के माध्यम से न केवल एक आम आदमी यह समझ सकता है कि ध्यान क्या है, इसे कैसे व क्यों करें? बल्कि वह यह भी समझ सकता है कि सब गुरुओं की विधियां एक दूसरे की विधियों से कितनी व कैसे भिन्न हैं तथा कौन सी उसके मन व व्यक्तित्त्व के अनुसार उसके लिए उपयुक्त है। इतना ही नहीं इस पुस्तक के माध्यम से साधक या पाठक घर बैठे-बैठे विभिन्न ध्यान विधियों को उनके महत्त्व एवं उपयोग सहित सरलता से समझ सकता है तथा उनका तुलनात्मक अध्ययन भी कर सकता है। कौन सा गुरु या कौन सा पंथ किस विधि को करा रहा है, वह विधि कितनी पारंपरिक है, कितनी आधुनिक, कितनी वैज्ञानिक और कितनी आध्यात्मिक है? इन सब के बारे में सम्पूर्ण जानकारी प्राप्त की जा सकती है।

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इश्क की खुशबू है सूफी

गुलाब पर लिखना हो तो कुछ पन्ने तो क्या कई किताबें भरी जा सकती हैं/ गुलाब के पास पंखुडियां हैं, रंग हैं, पराग है / लेकिन खुशबू के मामले में बात उलटी हो जाती है/ उसके पास कुछ भी नहीं जिसे वह दिखा सके/ इसलिए उस पर पन्ने तो क्या एक शब्द भी नहीं टांका जा सकता/ खुशबू क्या है? यह कहना मुश्किल है/ सूफी वही खुशबू है/ इश्क की खुशबू जिसे बयां नहीं किया जा सकता है/

सूफी सदा से आकर्षित करते रहे हैं फिर उनका पहनावा हो या नृत्य, उनके कलाम हों या व्यक्तित्व/ कौन हैं सूफी? क्या है इनका इतिहास? क्या हैं इनकी मान्यताएं और शिक्षाएं? साथ ही सूफी संतों की जीवनी को जानिए इस पुस्तक से/
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भारत के प्रसिद्द मंदिर, तीर्थ और धाम 

' कण -कण में है शंकर ' की मान्यता, भारत में यूं ही नहीं जन्मी, यहां के घर-घर में, गली-कूचों में मंदिर हैं तो, साधु संतों एवं ऋषि-मुनियों आदि ने अपने वर्षों के तप और साधना से इस भूमि को ऊर्जान्वित और गौरवान्वित किया है तो स्वयं देवताओं ने अवतार लेकर अपनी लीलाओं से विभिन्न क्षत्रों को तीर्थ और धाम में परिवर्तित किया है। यही कारण है कि पूरा भारत वर्ष मंदिरों एवं तीर्थों से भरा पड़ा है। जिनकी मान्यता व ख्याति भारत में ही नहीं पूरे विश्व भर में है, इसलिए भक्त व पर्यटक इन्हें देखने के लिए दूर-दूर से आते हैं। कौन से हैं वह प्रसिद्ध मंदिर, तीर्थ? क्या है उनका महत्त्व और इतिहास? विभिन्न मंदिरों एवं तीर्थों का संबंध किस देवता की किस घटना, कहानी या मान्यता से है? क्यों आवश्यक है इन के दर्शन? क्या कहते हैं शास्त्र इनके बारे में? कैसे और कब पहुंचें यहां? सब कुछ विस्तार पूर्वक आप इस पुस्तक में पढ़ सकते हैं। इतना ही नहीं यह पुस्तक मंदिरों एवं तीर्थों के आध्यात्मिक एवं वैज्ञानिक महत्त्व को भी रेखांकित करती है तथा इनमें आए व्यावसायिक परिवर्तनों का भी खुलकर उल्लेख करती है।

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व्रत - उपवास के धार्मिक और वैज्ञानिक आधार

जब भी 'व्रत ' शब्द का जिक्र होता है तो मन स्वत: ही किसी देवी-देवता के नाम से या किसी धार्मिक कृत्य से जुड़ जाता है और भोजन के त्याग का चित्र उभर आता है शायद यही कारण है कि जब भी हम कोई व्रत रखते हैं तो साथ में उपवास शब्द भी जोड़ देते हैं। अधिकतर लोगों का मानना है कि व्रत यानी भोजन का त्याग करना। संबंधित देवी देवता, की पूजा अर्चना करना, धार्मिक अनुष्ठान या कर्मकांड करना आदि इसलिए उपवास शब्द, व्रत के साथ इस कदर जुड़ गया है कि दोनों एक ही हो गए हैं। एक आम आदमी की नजर में दोनों का एक ही अर्थ है या फिर दोनों एक दूसरे के पर्याय हैं। जबकि दोनों एक दूसरे से बिल्कुल भिन्न हैं।
भले ही व्रत-उपवास का वास्तविक अर्थ कुछ भी हो लेकिन जनमानस में यह धर्म, आस्था एवं श्रद्धा का प्रतीक है। कुछ लोग इसे धर्म के साथ जोड़कर देखते हैं तो कुछ ज्योतिषीय उपायों की तरह लेते हैं। स्वास्थ्य की दृष्टि से इसके अलग लाभ हैं तो मनोविज्ञान की दृष्टि से इनका अपना महत्त्व है। शायद यही कारण है कि व्रत-उपवास का चलन सदियों नहीं युगों पुराना है। यह पुस्तक व्रत - उपवासों की महत्ता और उनके प्रारंभ होने की कथाएं भी प्रस्तुत करती है। 

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पर्वों का महा पर्व - दीपावली

जन-मानस में दीपावली के पर्व को मिठाइयों, पटाखों व लक्ष्मी पूजन के साथ ही जोड़कर देखा जाता है, जबकि दीपावली पर्व की परिभाषा, इसका इतिहास और महत्त्व तथा इससे जुड़े अन्य पर्व व पूजा-पाठ आदि सबका अपना आलौकिक अर्थ व रहस्य है। इतना ही नहीं दीपावली का पर्व विभिन्न तरह की पूजाओं एवं टोटकों तथा उपायों के लिए भी जाना जाता है फिर वह दीपावली की लक्ष्मी पूजा हो या गोवर्धन और विश्वकर्मा जी की पूजा। दीप दान की ऌपरंपरा से लेकर, दीपावली की रात किये जाने वाले टोटकों व उपायों के चलन का दीपावली से क्या संबंध है, यह पुस्तक आपको उनसे जुड़ी कथाओं और प्रथाओं के बारे में बहुत ही विस्तार से बताती है।

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 युग पुरुष महर्षि दयानंद सरस्वती  

लोग भीड़ के समर्थक होते हैं इसलिए वह कुछ भी मान लेतें हैं , क्योंकि भीड़ के खिलाफ जाना अपनी मौत को ललकारना है इसलिए हर चीज़ से सहमत हो जातें हैं पर कोई विरला ही होता है जो न केवल सत्य का उपासक होता है बल्कि सत्य का समर्थक एवं रक्षक भी होता है/ ऐसी मंशा और साहस रखनेवाला शरीर तथा ऐसी दिव्य उर्जा से परिपूर्ण आत्मा रोज़ - रोज़ जन्म नहीं लेती बल्कि युगों में कोई एक होता है जिसके पैदा होने में स्वयं नक्षत्र कहो या प्रकृति या परमात्मा सहायक होता है, जो आगे चलकर युग पुरुष कहलता है / ' महाऋषि दयानंद सरस्वती' उसी युग पुरुष का नाम है/
दयानंद जी को जानना यानी सही अर्थों में धर्म को जानना है/ दयानंद जी को पढना यानी एक साहस को पढना है, दयानंद जी को मानना यानी वेदों को मानना है/ लेकिन वक्त कि करवट एवं झूट कि तह में वेदों का सत्य तथा उनकी रक्षा करने वाले दयानंद जी का नाम, जीना व बलिदान कहीं व्यर्थ न हो जाये, इस पुस्तक के जरिये बस इतना सा मेरा प्रयास है/
विशेष :- यह पुस्तक डायमंड पॉकेट बुक्स द्वारा प्रकाशित है 
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व्यक्तित्व विकास में सहायक पुस्तकें


अच्छा इंसान सफल विजेता कैसे  बने ?

क्यों एक सच्चाए ईमानदार और नेक इंसान अपनी तमाम अच्छाइयों के बाद भी हार जाता है और एक तेज और चालाक इंसान सफल हो जाता है? क्यों दूसरों की मदद करने वाला इंसान परिश्रम और परिस्तिथियों में उलझकर रह जाता है और एक मतलबी एवं ईर्षालु इंसान रातों रात सुर्खियां बटोर लेता है? गलती कहाँ हो जाती है, कमी कहाँ रह जाती है कि नेक इंसान जीवन भर जूझता रह जाता है और तेज इंसान सफल हो जाता है? विस्तार पूर्वक जानिए और समझिए इस पुस्तक से।
यह पुस्तक न केवल इंसान को अच्छा इंसान बनने में मदद करती है, बल्कि अच्छा इंसान अपनी अच्छाइयों को कायम रखते हुए कैसे सफल विजेता बन सकता है उसके लिए सभी संभावनाओं के साथ व्यावहारिक एवं सक्रिय मार्ग भी उपलब्ध कराती है।

विशेष :- यह पुस्तक डायमंड पॉकेट बुक्स द्वारा प्रकाशित है 
इस पुस्तक को मंगवाने के लिए - 9810008004, 9818056669 पर कॉल करें  
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मनचाही सफलता पाएं अपनी एकाग्र क्षमता बढ़ाएं  

क्या है एकाग्रता? क्यों ज़रूरी है एकाग्रता ? क्या हैं कमज़ोर एकाग्रता के
कारण और लक्षण तथा कैसे सुधारें अपनी एकाग्र क्षमता को ? सरल एवं वैज्ञानिक तथा व्यावहारिक उपायों सहित जानिए इस पुस्तक से। कौन सा ध्यान कैसे करें, कौन सा मंत्र कैसे जपें, कौन से रंग या सुगंध का प्रयोग करें, कौन सा संगीत सुनें, शरीर एवं हथेलियों के किस भिन्दु पर कितना दबाव डालें, श्वास कैसे लें, कैसा आहार लें, कौन सा योग व व्यायाम करें, कौन सा रत्न धारण करें, कैसा हो घर का वास्तु ,क्या हों ज्योतिषीय एवं मनोवैज्ञानिक उपाय कि हमारी एकाग्र क्षमता मैं सुधार आए जानिए विभिन्न विधियों एवं पद्दितियों को इस पुस्तक से।

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व्यक्तित्व निखारें भविष्य सुधारें  

सफल तो वो भी हो जातें हैं जिनका कोई व्यक्तित्व नहीं होता है परन्तु ऐसी सफलता न तो किसी पर अपनी छाप छोड़ती है न ही किसी के लिए प्रेरणा बन पाती है। व्यक्ति की सफलता उसके व्यक्तित्व से है और व्यक्तित्व का मतलब सिर्फ आकर्षक दिखना या सामने वाले को इम्प्रेस करना ही नहीं होता। क्या है सही व्यक्तित्व की पहचान तथा उसे कैसे हासिल किया जाये जिससे न केवल हमारा भविष्य उज्जवल हो बल्कि हम एक मिसाल की तरह याद किये जाएं, जानिए इस पुस्तक से।

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मैनेजमेंट के मूल मंत्र 

आज की दौड़ती भागती ज़िन्दगी में आदमी उलझकर रह गया है, वह बहुत कुछ करना चाहता है पर कुछ भी नहीं कर पा पाता। तमाम संभावनाएं, टेक्नोलॉजी, हुनर और डिग्रियों उपलब्ध होने के बाद भी वह कार्य एवं जिम्मेदारियों के बीच अपने को असफल ही पता है। ऐसा नहीं की उसके पास साधन नहीं है या वक्त नहीं है सब कुछ है बस वह प्रबंधित एवं व्यवस्थित नहीं है। शशिकांत 'सदैव' की यह पुस्तक 'मैनेजमेंट के मूल मंत्र ' इसी समस्या को ध्यान में रखकर लिखी गई किताब है जो की प्रबंधन के ज़रिये हमें न केवल व्यावसायिक तौर पर सफल बनाने में हमारी मदद करती है बल्कि हमें व्यवहारिक एवं व्यक्तिविक तौर पर भी हमें ऊपर उठती है। सच तो यह है व्यक्तित्व निखार और सफलता का आधार है मैनेजमेंट। मैनेजमेंट किसका, कैसे ,कब और कितना किया जाए ये जानना जरूरी है , जिसे यह पुस्तक विस्तारपूर्वक कई उदाहरणों के साथ समझाती है। इतना ही नहीं जहाँ एक ओर यह पुस्तक टाइम, डे, वर्क, गोल, कॅरिअर एवं स्ट्रेस आदि जैसे व्यावहारिक विषयों को मैनेज करना सिखाती है वही दूसरी ओर लाइफ, एनर्जी, मूड, विज़न , सेल्फ , एंगर, लोनलिनेस तथा लव और रिलेशनशिप सूक्ष्म एवं गूढ़ विषयों को भी मैनेज करना सिखाती है। कह सकते हैं कि भौतिक एवं आध्यात्मिक सफलता कर मनुष्य के सच्चे विकास में सहायक साबित हो सकती है यह पुस्तक।

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स्वयं को और दूसरों को पहचानने की कला 

दुःख का कारण यह नहीं कि हम सामने वाले को नहीं जानते, समस्या यह है कि हम खुद को भी नहीं पहचानते/ जितना मुश्किल दुसरे को जानना है उतना ही मुश्किल स्वयं  को पहचानना भी है/ यदि हम स्वयं  को और दुसरे को पहचानने कि कला सीख़ जाएँ तो आपस में न केवल तालमेल बिठा सकतें हैं बल्कि जीवन को सुखी भी बना सकते हैं/
स्वयं को और दूसरों को पहचानने के कई माध्यम हैं/ फिर वह मनोविज्ञान हो या आदतें, ज्योतिष हो या हस्त रेखा विज्ञानं बॉडी  लैंग्वज यानी शारीरिक भाषा हो या अंग लक्षण, आपका कार्य हो या पहनावा, आपकी पसंद, नापसंद हो या फिर आपका जन्मांक या नामाक्षर, आपके शोक व्यवहार आदि कई माध्यमों से स्वयं को और दूसरों को पहचान सकते हैं/
इन सबको जानने के लिए आपको न तो मनोवैज्ञानिक होने कि जरुरत है न ही कोई ज्योतिषी होने कि/ यह पुस्तक इन्हीं माध्यमों के जरिये स्वयं को और दूसरों को पहचानने में आपकी मदद करेगी/ उम्मीद है, पहचानने कि कला सीख़ कर आप न केवल स्वयं संभल सकते हैं बल्कि दूसरों को, अपने रिश्तों एवं  संबंधों को भी सही ढंग से संभल सकते हैं/

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सीखें जीवन जीने की कला

जन्म लेना हमारे हाथ में नहीं है, लेकिन इस जीवन को सुंदर बनाना हमारे हाथ में है और जब सुख कि यह संभावना हमारे हाथ में है तो फिर यह दुःख कैसा? यह शिकायत कैसी? हम क्यों भाग्य को कोसें या दुसरे को दोष दें? जब सपने हमारे हैं तो कोशिशें भी हमारी होनी चाहियें/ जब पहुंचना हमें है तो यात्रा भी हमारी ही होनी चाहिए/ पर सच तो यह है जीवन कि यह यात्रा सीधी और सरल नहीं है इसमें दुःख है, तकलीफें हैं, संघर्ष और परीक्षाएं भी हैं/ ऐसे में स्वयं को हर स्थिति परिस्थिति में, माहौल हालात में सजग एवं संतुलित रखना वास्तव में एक कला है/ इसलिए... कैसे पायें साहस, सफलता, संयम, आत्मविश्वास, संतुलन, संतुष्टि, एकाग्रता, सहनशीलता, सकारात्मक सोच और सुख? कैसे भगाएं काम, क्रोध, मोह, ईर्ष्या, तनाव, आलस, अहंकार, भय, नीरसता, अकेलापन, शिकायतें और दुःख? कैसे समझें स्वयं को, जीवन को, संबंधों जिम्मेदारियों को, धर्म अध्यात्म और आत्मा परमात्मा को? 

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सब संभव है

इस जगत में सब संभव है ऐसा कुछ भी नहीं जो संभव न हो क्योंकि जीवन संभावनाओं से सराबोर है/ और संभावनाएं भी अकेली नहीं हैं, उनमें बहुत कुछ संयुक्त है, संलग्न है/ वह अपने साथ अपना विकल्प, अपना जोड़ीदार तो अपना विपरीत भी लाती हैं/ कई अवसर, तो नई दस्तक भी पिरोती है / यहाँ मार्ग भी हैं और उपाए भी हैं/ उठो, देखो अपने आस पास/ कहो यहाँ क्या नहीं है ऐसा क्या है जो संभव नहीं है/
सच तो यह है व्यक्ति को व्यक्ति बनता है उसका व्यक्तित्व और व्यक्तित्व बनता है सकारात्मक विचारों से और सकारात्मक विचार तभी अभिव्यक्त होते हैं, जब रूपांतरण उपरी सतह पर नहीं भीतरी तल पर घटता है अर्थात जब परिवर्तन आत्मिक होता है और परिवर्तन जब आत्मा के स्तर पर होता है तब सब संभव हो जाता है/ तब सोच भी सही और नजरिया भी साफ़ हो जाता है/
जीवन में कुछ भी असंभव नहीं, सब कुछ संभव है यदि सोच सकारात्मक और नजरिया साफ़ है, सच्ची  लगन और आत्मविश्वाश है/ कैसे करें कोशिश और कैसे चुने सही मार्ग कि हर कार्य एवं परिस्थिति संभव हो जाये? जानिए एस पुस्तक से/

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कैसे छोड़ें अपनी छाप?

सच तो यह है व्यक्तित्व ही किसी व्यक्ति को सही मायने में न केवल व्यक्ति बनाता है बल्कि उसे पूजनीय, देवता स्वरूप भी बनाता है। यदि व्यक्तित्व आकर्षक होगा तो भविष्य उज्ज्वल होगा इसलिए हमें यदि अपने भविष्य को सुधारना है तो पहले अपने व्यक्तित्व को निखारना होगा, बाहरी उत्थान से पहले आत्मोत्थान करना होगा, बाहर की उपलब्धियों को पाने से पहले स्वयं को पाना होगा। भविष्य को जीतने से पहले अपने आज को जीतना होगा। लोगों को हराने से पहले स्वयं की बुराइयों को हराना पड़ेगा, तभी सही मायने में न केवल भविष्य बल्कि यह मनुष्य जन्म सफल व सुन्दर कहलाएगा। अपने व्यक्तित्व को कैसे निखारें यही सब सिखाती है यह पुस्तक।

विशेष :- यह पुस्तक प्रभाकर प्रकाशन द्वारा प्रकाशित है 
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स्वास्थ्य संबंधी पुस्तकें 


सिरदर्द और माइग्रेन से मुक्ति

सिरदर्द घर-घर में होने वाला एक आम रोग है। शायद ही कोई होगा जिसे कभी सिरदर्द नहीं हुआ हो। बाकी रोगों के तो मौसम होते हैं पर सिरदर्द एक ऐसी समस्या है जिसका कोई मौसम नहीं होता। यह कभी भी, किसी भी उम्र में, किसी को भी हो सकता है। यह कब, क्यों और कैसे हो जाता है, इसका पता ही नहीं चलता क्योंकि यह सबको होता है व होता आया है इसलिए हम इसे आम समझ लेते हैं । इसे आम समझने के कारण ही हम इसे गंभीरता से नहीं लेते और जब यह बिगड़कर माइग्रेन का जटिल रूप ले लेता है तो हमारा जीना मुश्किल कर देता है। हालांकि सिरदर्द व माइग्रेन होने के कई कारण हैं पर इसका मुख्य कारण हमारी बदलती जीवनशैली है जो प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष रूप से इसे न्यौता देती है। सिरदर्द क्या है? यह क्यों होता है? क्या हैं इसके छोटे-छोटे कारण व लक्षण? इसे बिना दवा के प्राकृतिक ढंग जैसे, योग, ध्यान, मुद्रा विज्ञान, आयुर्वेद, घरेलू नुस्खे, व्यायाम, रंग, संगीत, आत्मसम्मोहन, एक्यूप्रेशर एवं सुगंध चिकित्सा आदि के माध्यम से कैसे ठीक किया जा सकता है सब कुछ इस पुस्तक में उपलब्ध है।

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तनाव मुक्ति के सरल उपाय 

यह तो हम सभी जानते हैं कि हर आदमी किसी न किसी बात को लेकर दुखी व तनावपूर्ण है, पर क्या आप जानते हैं कि, अगला हर पांचवा आदमी किसी न किसी मनोरोग से पीड़ित है, जो वह खुद नहीं जानता। जी हां कई परिणाम ऐसे हैं जो इस बात का प्रमाण देते हैं। टेंशन के कारण कोई आत्महत्या कर रहा है तो, कोई अपना घर छोड़कर भागा हुआ है। कोई दंगे फैलाने में लगा है, तो कोई बलात्कार कर रहा है। किसी को किसी भय ने घेर रखा है तो, कोई किसी लत की गिरफ्त में है। किसी का आत्मविश्वास लड़खड़ा रहा है तो किसी की याददाश्त जवाब देने लगी है। किसी को तन्हा रहने का दुख है, तो किसी को किसी के साथ रहने का दुख है। कोई खुद को मार डालना चाहता है, तो किसी के जीने का मकसद सामने वाले को मारना है। सच तो यह है यहां गंवाने वाला तो दुखी है ही, कमाने वाला भी संतुष्टï नजर नहीं आता। यह सारी स्थितियां व परिणाम दर्शाते हैं कि आदमी मानसिक रूप से कितना रुग्ण, बेचैन व अशांत है और वह इसलिए है क्योंकि वह चौबीस घंटे किसी न किसी टेंशन से भरा हुआ है। टेंशन उसके जीवन का अभिन्न अंग बन गया है और यही टेंशन जब लंबे समय तक जीवन में बना रहता है तो वह डिप्रेशन का रूप ले लेता है जो कि और भी खतरनाक है। इससे पहले कि टेंशन, डिप्रेशन का भयंकर रूप ले हमें टेंशन को जड़ से खत्म करना होगा और यह पुस्तक हमें टेंशन को समझना व इससे मुक्त होना सिखाती है।
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ऐसे पाएं मोटापे से मुक्ति 

मोटापा न केवल एक रोग है बल्कि अनेक रोगों के जन्म का कारण भी है, इसलिए यह बहुत ही आवश्यक है कि मोटापे को जल्द से जल्द दूर कर लिया जाए अन्यथा मोटापा व्यक्ति के बाहरी व्यक्तित्व को न केवल बेडौल बना कर उसके आत्मविश्वास को कम करता है बल्कि व्यक्ति को रोगी भी बना देता है।
इस कारण आज लोग अपने वजन को लेकर कुछ ज्यादा ही चिंतित रहने लगे हैं जिसकी वजह से वे कई गलतफहमियों का शिकार हो जाते हैं और उनका वजन घटने के बजाय बढ़ने लगता है। मोटापा क्या है? क्यों होता है? क्या हैं इससे मुक्ति के उपाय? संबंधित विषयों को, निवारण सहित जानिए, इस पुस्तक से।
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आहार से करें उपचार ( जानें किस रोग में  क्या खाएं )

हम भोजन या आहार को अधिकतर पेट भरने का ही स्रोत समझते हैं पर हम भूल ही जाते हैं कि हम जो कुछ भी खाते हैं वह मात्र हमारा पेट ही नहीं भरता बल्कि हमें  शक्ति भी प्रदान करता है। आहार की यही शक्ति हमें स्वस्थ और निरोगी रखने में हमारी मदद करती है। परन्तु जहां  एक ओर हमारा आहार हमें स्वस्थ रखता है वहीं हमें बीमार भी कर देता है, क्योंकि हमारा  आहार हमारे लिए औषधि भी है और विष भी। इसके लिए न केवल हमारे लिए यह जानना आवश्यक है कि किस खाद्य पदार्थ में कौन से गुण छिपे होते हैं, बल्कि हमें इस बात की जानकारी भी होनी चाहिए कि किस रोग में क्या खाएं, क्या न खाएं, इस बात को इस पुस्तक में विस्तार पूर्वक समझाया गया है।  इतना ही नहीं जीवन में आहार का क्या और कितना महत्त्व है तथा हम किस तरह अपने आहार का प्रयोग, किसी रोग के उपचार के रूप में कर सकते हैं, यह सब हम इस पुस्तक से सीख सकते हैं।

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आपका आहार स्वास्थ्य का आधार (जानें किस आहार में क्या छिपा है )

हम भोजन या आहार को अधिकतर पेट भरने का ही स्रोत समझते हैं पर हम भूल ही जाते हैं कि हम जो कुछ भी खाते हैं वह मात्र हमारा पेट ही नहीं भरता बल्कि हमें  शक्ति भी प्रदान करता है। आहार की यही शक्ति हमें स्वस्थ और निरोगी रखने में हमारी मदद करती है। परन्तु जहां  एक ओर हमारा आहार हमें स्वस्थ रखता है वहीं हमें बीमार भी कर देता है, क्योंकि हमारा  आहार हमारे लिए औषधि भी है और विष भी। इसके लिए न केवल हमारे लिए यह जानना आवश्यक है कि किस खाद्य पदार्थ में कौन से गुण छिपे होते हैं, बल्कि हमें इस बात की जानकारी भी होनी चाहिए कि किस रोग में क्या खाएं, क्या न खाएं, इस बात को इस पुस्तक में विस्तार पूर्वक समझाया गया है।  इतना ही नहीं जीवन में आहार का क्या और कितना महत्त्व है तथा हम किस तरह अपने आहार का प्रयोग, किसी रोग के उपचार के रूप में कर सकते हैं, यह सब हम इस पुस्तक से सीख सकते हैं।

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योग का इतिहास, महत्व और लाभ  

अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस के रूप में भले ही योग ने आज पुन: ख्याति प्राप्त कर ली है परन्तु सच तो यह है कि तन-मन को शांत और स्वस्थ रखने वाला योग, सदियों नहीं युगों पुराना है, जिसे हर कोई नहीं जनता। यह पुस्तक जीवन में न केवल योग के महत्त्व को दर्शाती है बल्कि योग के इतिहास व उससे मिलने वाली लाभों को भी बताती है। क्या है योग का विज्ञान और विधान? यह कितना व्यावहारिक है, कितना वैज्ञानिक? किस रोग में, कौन सा योग, कैसे और कितना करें? आध्यात्मिक साधना और स्वास्थ्य सुधार में कितना सहयोगी है योग? सब कुछ विस्तार पूर्वक इस पुस्तक से जाना जा सकता है। इतना ही नहीं किन योगाचार्यों एवं योग गुरुओं की योग को विश्व विख्तयात बनाने में अहम् भमिका रही, कैसे और क्यों, यह योग आज विश्व भर में अपनी छाप छोड़ रहा है, इन सभी का विवरण इस पुस्तक में है। 

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करें योग रहें निरोग ( जानें किस रोग में कौन सा योग करें )

यूँ तो योग व उसके महत्त्व एवं लाभ पर ढेरों पुस्तकें प्रकाशित हैं, परंतु जब भी हमें उन्हें व्यवहार में लाना होता है यानी किसी रोग को ठीक करने में उनका उपयोग करना पड़ता है तो बहुत मुश्किल हो जाती है, क्योंकि पुस्तक, आसन व उसके महत्त्व को ध्यान में रखकर लिखी गयी होती है, रोग व स्वास्थ्य को ध्यान में रखकर नहीं, और एक आसन व प्राणायाम के कई लाभ होते हैं जो विभिन्न रोगों में सहायक होते हैं, परन्तु किस रोग में कौन सा आसन या प्राणायाम करें, उसे याद रखपाना बहुत कठिन हो जाता है। इस पुस्तक की विशेषता ही यह है की आप अपने रोग या आवश्यकता अनुसार आसन को सरलता से चुन सकते हैं व निर्देश अनुसार कर सकते हैं। यह पुस्तक आपको योग से निरोगी रहने में मदद करती है।


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काव्य एवं शायरी संग्रह 

तेरे साथ की आदत 

यह ग़ज़ल संग्रह 'तेरे साथ की आदत' अन्य ग़ज़ल संग्रहों से बहुत भिन्न है। यह ग़ज़लें मात्र मनोरंजन या गुनगुनाने तक ही सिमित नहीं है बल्कि यह पाठक के लिए औषधि का काम करतीं हैं। सच तो यह है यह संग्रह लोंगो के लिए उपचार की तरह हैं ,जिसे हर पढ़ने वाले को राहत के साथ -साथ इस बात का भी इत्मिनान होता है की कोई है जो उसे बिना मिले , बिना जाने इतनी गहराई से जान व समझ सकता है। प्यार एवं रिश्तों से जुड़े सभी भाव जैसे इज़हार, इंतज़ार, तन्हाई, रुस्वाई, उम्मीद , कश्मकश , मज़बूरी , बेबसी ,शिकायत, आदत, खमोशी, मदहोशी ,जुदाई , बेवफाई आदि मनोभावों को बड़ी ही बारीकी से ग़ज़लों में ढ़ाला गया है या यूँ कहें यह सब शशिकांत 'सदैव' की ग़ज़लों का रूप लेकर इस संग्रह में उभरें हैं। इतना ही नहीं जीवन, दर्शन, मनोविज्ञान एवं इबादत की झलक भी कई ग़ज़लों में बखूबी दिखती है। यह संग्रह सिर्फ उनके लिए ही नहीं है जो ग़ज़लों या कविताओं का शौक रखतें हैं बल्कि उनके लिए भी है जिन्हें लगता है कि वो अकेले हैं और उन्हें, उनके जज़्बातों को कोई नहीं समझ सकता। हर उम्र और भाव को व्यक्त करता है यह संग्रह। यही बात इस संग्रह को अद्भुत और अनूठा बनती है।

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 स्त्री की कुछ अनकही

स्त्री भले ही स्वयं को लाख बहानों में उलझाय या हज़ार जिम्मेदारियों में खुद को व्यस्त रखे पर स्वयं को फिर भी कई बार तन्हा पाती है/ बात बनाने में माहिर स्त्री, दर्द में सुकून तलाशना सीख़ जाती है पर बात कहने में हार जाती है/ उसे कभी 'ना' कहने का दुःख सताता है, तो कभी कह कर ना समझ पाने कि उलझन सताती  है/ स्त्री लिपटी रहती है इंतजार में और निभाती रहती है दस्तूर/ कोशिशों में रोज़ इजाफा होता है, उम्मीदें रोज़ नसीहत देती हैं और ख्वाहिशें दिन रात का मुआयना करके आँखों में सबक लेकर लौट आती है/ ले देकर एक शाम हाथ लगती है वो भी अनचाहे बंदोबस्त में रवां हो जाती है/ न कहने का जरिया बनता है न दुःख को स्वीकारने कि मोहलत/  बस मन हल्का होने को छटपटाता रहता है/ अंदाज़ा लगाता रहता है सही गलत का, तौलता रहता है पाप और पुण्य को/ आंसूं हैं कि नापते नहीं थकते होंठों से आँखों कि दूरी और खामोशी है कि होंठों से पसीजने का नाम नहीं लेती/ इस बीच स्त्री का कुछ - कुछ नहीं बहुत कुछ अनकहा रह जाता है/ यह काव्य संग्रह उस अनकही को ही कहने का एक प्रयास है/

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दर्द की कतरन 

दर्द कुछ ऐसे भी हैं, जो ग़ज़ल में तब्दील नहीं हो पाए, जो गीत बनने से पहले ही मुरझा गए/ न पूरी तरेह कलम से फूट पाए न आँखों से बरस पाए/ जिन्हें न होठों ने मौका दिया न ही कोई दूसरा सुनने को राजी हुआ/ जिन्हें न बयां करने का इल्म था न छुपाने का हुनर, बस बिना सलीके और कायदे कि स्याही से लिपटकर  शब्द पन्नों पर छिटक  गए / जो शब्द बिछ सकते थे बिछ गए और कुछ लापता हो गए/  वो आज भी मौजूद हैं कागजों में, लकीरों के नीचे कुछ शब्दों के आकर में कतरन बनकर टंके हुए हैं , जो कहीं से शेर लगतें  हैं तो कहीं  से ग़ज़ल , कहीं से गीत लगते हैं तो कहीं से रुबाई/ यह शाएरी संग्रह कुछ और नहीं मेरे दर्द कि कुछ तुकी - बेतुकी कतरने हैं/

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दर्द के इर्द - गिर्द 

मनुष्य के भीतर जमी हुई यादें , रुके हुए भाव , ठहरी हुई उम्मीदें तथा दबी हुईं हसरतें ही तो हैं जो दर्द के रूप में शब्दों के पीछे  कैद हैं / और यह शब्द चुप्पी की तह में ढंके हुए हैं / यह शब्द झडेगे तो मवाद निकलेगा , यह लफ्ज़ सरकेंगे तो दर्द पिघलेगा / शब्द दफ़न होंगे तभी हम सांस ले सकेंगे / सारा खेल इन शब्दों का है / यह शब्द ही दावा हैं हमारे दर्द की / मैं तुम्हें शब्द देना चाहता हूँ , तुम्हारे  तन्हा शब्दों को मैं हमसफ़र देना चाहता  हूँ  उनके  मौन  को, उनके शब्द देना चाहता हूँ / हमारे इर्द गिर्द कोई और नहीं सिर्फ हम हैं / और हम शब्दों  की कशमकश का जोड़ हैं जो सदा एक दर्द , एक गुबार पैदा करती है / यह काव्य संग्रह भाव से आभाव तक , दर्द से कराह तक की  एक - एक बूंद  को बीनने का प्रयास है , लफ़्ज़ों से लफ़्ज़ों को चुगने का प्रयास है /


रिसता हुआ दर्द 

दर्द की एक खासियत है की उसे बहुत कुछ तो मिलता है पर बहने की न तो जगह मिलती है न ही बहने के बहाने/ बेचारा निकलता भी है तो रिस - रिस कर / इस काव्य संग्रह की कविताएँ ऐसे ही दर्द को बयां करतीं हैं जो बहुत बार आपके भीतर भी रुका या रिसा होगा / दर्द जो घूंट -घूंट इंसान पीता हैं एक दिन कविताओं के माध्यम से रिसने भी लगता है /








इन्द्रधनुष रचते हस्ताक्षर

यह पुस्तक  कई कवियों की कवितों का संकलन है , जिसमे इन्द्रधनुष की ही तरह  जीवन एवं संवेदनाओं के भिन्न - भिन्न  रंग हैं और हस्ताक्षर कुछ और नहीं कवियों की कविताएँ हैं /