COMPLIMENTS

 
गोपाल दास नीरज - तुम्हारी किताब इतनी कमाल की है की मै उसमें डूब गया और पड़ता ही चला गया. मै हमेशा चाहत था की ओशो पर कोई एसा काम होना चाहिए सो तुमने कर दिखया. आप एक भावुक कवि हैं, दर्द आपके हर काव्य में नजर आता है। दर्द-पीड़ा-छटपटाहट आपके सहचर और सहेलियां हैं। ये सभी आपको एक श्रेष्ठ रचनाकार बनाने में सफल होते हैं। इनमें जो एक दर्द की अंतर्धारा है वह निरन्तर गतिमान है उसकी लय के साथ मन भी बहने लगता है।


अशोक चक्रधर-  शशिकांत की सारी कविताएं स्त्री के एक-एक क्षण को इकट्टा करती हैं। जो स्त्री के इतने निजी हैं और इतने गोपन हैं कि पकड़ में नहीं आ सकते। स्त्रियां हैरान हो सकती हैं और ऐसा सोच सकती हैं कि शशिकांत ने शायद अपने नाम से आ का डंडा निकाल दिया है। यह कोई शशिकांत नहीं, कोई शशिकांत ही हो सकती है। तो क्या शशिकांत को परकाया प्रवेश की क्षमता हासिल है? वो स्त्री के नेह में, देह में, गेह में प्रवेश करना जानते हैं? शायद हां। यह क्षमता सिद्ध करती है कि वह कवि हैं और परकाया प्रवेश कर सकते हैं।


सुरेन्द्र शर्मा - एकाग्रता एवं सफलता से संबंधित ये पुस्तकें आज के दौर के लिए बहुत उपयोगी हैं। सफलता वही है जिसे हम अपने दम पर हासिल करते हैं और शशिकांत 'सदैव ' की पुस्तकें हमें सही मायनों में सफल होना सिखातीहैं।



हिमांशु जोशी  - प्रेम के बारे मे या प्रेम पर लिखना सरल नहीं परन्तु  पुस्तक 'इश्क  की खुशबू है सूफी' मे शशिकांत सदैव ने प्रेम को जिस सुन्दर ढंग से अभिव्यक्त किया है वह  वास्तव मे सराहनीय है .




बलदेव वंशी   -  इस जग मे वस्तुओं को नाम तथा अर्थ हमने दिए हैं, वरना वे सब तो केवल 'होना' जानती हैं, होने में  मे ही उनकी सार्थकता एवं पवित्रता है. शशिकांत सदैव की पुस्तक 'इश्क  की खुशबू है सूफी' उसी 'होने' की एक प्यारी कोशिश है.




आचार्य निशांत केतु  - शशिकांत सदैव  की पुस्तके विवीध पक्षों का अनावरण और विश्लेषण करती हैं. उनकी लेखनी  में मकरंद का  गद्यगीत और मधुगुन्जन का अनहद नाद भी है.






बिंदेश्वर पाठक - शशिकांत 'सदैव' की यह पुस्तक मैंने पढ़ी, ऐसा लगा जैसे मैंने ही लिखी है। यह पुस्तक अनेक तथ्यों को अपने में समेटे है और एक बृहत फलक पर इंसान को सफलता के मार्ग पर ले जाने के निर्देश करती है। इसमें आज के इंसान की वास्तविक सोच के उतार-चढ़ाव की उथल-पुथल को सहज और सरल भाषा में प्रस्तुत कर उन पर बारीकी से प्रकाश डाला गया है, जहाँ पर पाठक स्वयं एक शून्यकाल की स्थिति में पहुँचकर गंभीर चिंतन की ओर अग्रसर होने लगता है और अपनी सफलता के मार्ग खोजने में सफल महसूस करता है। यह पुस्तक नई पीढ़ी के पाठकों को एक नई दिशा प्रदान कर उन्हें राह दिखाने में सक्षम होगी। शशिकांत ‘सदैव’ ने अपनी पुस्तक में छोटे-छोटे विचार-मंत्र दिए हैं, जिनसे सफलता पाई जा सकती है। शशिकांत ‘सदैव’ का प्रयास प्रशंसनीय है।

जोगिन्दर सिंह (पूर्व सी.बी. आई. निर्देशक)  - शशिकांत 'सदैव' की पुस्तक 'सब संभव है' पड़ने योग्य ही नहीं अपितु पूर्णता प्रयोगात्मक है. यह पुस्तक जीवन में सकारात्मक सोच व साफ़ नज़रिए का अविर्भाव  करती है .



डॉ. महीप सिंह  - शशिकांत 'सदैव' की पुस्तक 'सब संभव है' जीवन  से  गहरा   सरोकार  रखने   वाले अनेक प्रशनों को सुलझाती है. मुझे विश्वास है की यह पुस्तक व्यक्ति को आत्मिक रूपांतरण की दिशा में सार्थक सिद्ध होगी .




वेद प्रताप वैदिक  - ओशो पर लिखी शशिकांत 'सदैव' की पुस्तक मुझे बहुत पसंद आई है. मैं शशिकांत को पढ़ता रहा हूं, वह बहुत ही प्रतिभावान लेखक हैं/ यह ओशो के प्रेम में पूरी तरह डूब चुके हैं और पूरी तरह ओशोमय हो चुके हैं। इतना ही नहीं यदि शशिकांत 'सदैव' के लेख से उनका नाम हटा दिया जाए तो यह पहचानना मुश्किल है कि लेख ओशो का है या या शशिकांत जी का. यह सरल शब्दों में गहरी बातों को लोगों के दिलों में उतार देते हैं /


 मिनाक्षी लेखी - ​​ मन-मस्तिष्क की क्षमता को कैसे एक ही दिशा में लगाया जाए इस बात को बहुत ही सुन्दर और सरल शब्दों में बताती है शशिकांत 'सदैव ' की पुस्तक 'मनचाही सफलता पाएं अपनी एकाग्र क्षमता बढ़ाएं ' छोटी-छोटीआस-पास की व्यावहारिक चीजों के माध्यम से हम कैसे स्वयं को नियन्त्रित व एकाग्रचित कर सकते हैं यह हमें इनकी पुस्तक से सीखना चाहिए। सफल तो बहुत होते हैं परंतु सामने वाले पर छाप वही छोड़ते हैं जिनका व्यक्तित्व मजबूत होता है और शशिकांत 'सदैव ' जी की पुस्तक 'व्यक्तित्व निखारें भविष्य सुधारें ' व्यक्तित्व को निखारने व उसका निर्माणकरने में सहायक है।
दोनों ही पुस्तकें पढऩे योग्य हैं । मैं चाहती हूं अधिक से अधिक लोग इसे पढ़ें। विशेषकर युवा पीढ़ी के लिए अनुकरणीय है। सरल भाषा में लिखी गयी दोनों पुस्तकें जीवन में बदलाव लाने में सहायक हैं, इन्हें पढऩे के लिएज्यादा सोचने, याद करने या दिमाग लगाने की जरूरत नहीं है। ये सरलता से आत्मसात हो जाती हैं। मैं विश्वास के कह सकती हूं कि आनेवाले समय में हम भारत को, अपने व्यक्तित्व को कैसे निखार सकते हैं येदोनों पुस्तकें उसमें सहायक होंगी।  


 विजय गोयल - मैं यह नहीं कहूंगा के मैंने शशिकांत ' सदैव ' जी की पुस्तकों को पढ़ा है बल्कि मैंने इनकी दोनों पुस्तकों को जिया है। ये मोटीवेट करती हैं तथा मनुष्य में छिपे उसके सामथ्र्य को पहचानने का काम भी करती हैं। हमें इन्हें पढऩा ही नहीं है बल्कि जीवन में उतारने की कोशिश भी करनी है।






इंद्रेश कुमार - यह पुस्तक हमें सफल और प्रसन्न रहने के साथ -साथ सफल और अच्छा इंसान दोनों बनना सीखाती है। यह पुस्तक इंसान के सफल होने के लिए उसका मार्गदर्शन ही नहीं करती बल्कि उस पथ पर चलना भी सीखाती है जिस पर चलके सफलता प्राप्त हो सकती है। शशिकांत सदैव की यह पुस्तक उनके अनुभवों का अभूत पूर्व प्रयोग है,आशा है वह पुस्तक के
रूप में इस समाज और साहित्य को अपने अनुभव देते रहेंगे।




पंकज के सिंह - यह पुस्तक लेखन और अभिव्यक्ति के माध्यम से ही नहीं मार्गदर्शन के हिसाब के माध्यम से भी यह एक बेहतरीन पुस्तक है, जो हमारी आँखे खोलती है। इस पुस्तक के जरिए, शशिकान्त सदैव ने सफलता और इंसान की सामाजिक जिम्मेदारियों के साथ -साथ, जीवन के हर व्यावहारिक पहलू को बड़ी गहराई के साथ छुआ है। मैं उन्हें उनकी इस पुस्तक के लिए बधाई देता हूँ तथा हर इंसान से आग्रह करता हूँ की वो इस पुस्तक को अवश्य पढ़ें।


डा.रवीन्द्र नागर - मैं शशिकांत 'सदैव ' जी की वाणी का मुरीद हूं, वे जितना मीठा बोलते हैं उतनी ही बढिय़ा पुस्तकें भी लिखते हैं । इनकी पुस्तकें जीवन की हकीकत से पहचान कराती हैं। वे जब भी किसी विषय पर लिखते हैं उसमें पूरेडूबकर गहराई से, शोध के साथ लिखते हैं। इनकी पुस्तकों को पढ़कर ज्ञान ही नहीं मिलता बल्कि जीवन की व्यावहारिक जरूरतों का भी बोध होता है।




प्रभाकर शोत्रीय - 'इश्क  की खुशबू है सूफी' सूफी एवं सूफीवाद पर बहुत ही अच्छी, सुन्दर अवम उच्च स्तर की पुस्तक है. संकलन एवं अभिव्यक्ति दोनों ही बढ़िया है .





डॉ हरीश नवल  - शशिकांत 'सदैव' तुम उम्र की द्रिष्टी से तुम युवा हो पर ज्ञान की द्रिष्टी से तुम ज्ञानवृद्ध  हो, सूफी को लेकर जितना कुछ  इस  ग्रन्थ में उपलब्ध है उतना नामी विद्वानों की प्रसिद्ध  पुस्तकों में नहीं मिलता.
शशिकांत सदैव की यह पुस्तक इंसान के लिए एक 'आई ओपनर' है, जो अंतर्मन की आँखें व भीतर के तिलस्म को खोलती है। यह पुस्तक 'फ्यूशन' है पूर्व और पश्चिम का, जो सीखाती है कि जीवन में कुछ अच्छाई व कुछ बुराई दोनों जरूरी है। यह पुस्तक हमें व्यावहारिक और संतुलित दोनों होना सीखाती है। आज के युवाओं को तो इस पुस्तक को अवश्य पढ़ना चाहिए।


अमर नाथ अमर  - बहुमुखी प्रतिभा के धनी शशिकांत 'सदैव' युवा कवियों और लेखकों में एक अलग स्थान रखतें हैं. उनी लिखी कविताएं एवं ग़ज़लें एक इसे अद्यात्म की ओर ले जातीं हैं जहाँ आम लोगों की द्रिष्टी कम ही जाती है तथा उनकी लेखनी अद्यात्म एवं सामजिक सरोकार के बीच सेतु का काम करती है. शशिकांत 'सदैव' की गज़़लें व शेर न केवल एक चित्र खींचते हैं बल्कि उन अहसासों को भी पैदा करते हैं जिन्हें शब्दों के ज़रिये कह पाना मुश्किल है। ये गज़़लें पढऩे वाले को ऐसे लोक में ले जाती हैं जहाँ वह खुद को भी खड़ा महसूस करता है। तथा मैनेजमेंट के बाइस विषयों के माध्यम से उन्होंने प्रबंधन को जितने गहराई और विस्तार से समझाया है वह अपने आप में नया, सम्पूर्ण और बेजोड़ है। मैनेजमेंट की यह पुस्तक हर स्कूल - कालेज में लगनी चाहिए।



लक्ष्मी शंकर वाजपई  - पुस्तक 'कौन है ओशो' के माद्यम से शशिकांत 'सदैव' ने ओशो का सही पक्ष निकला है, इस शोध के जरिये उन्होंने अनूठा कार्य किया है . ओशो के पक्ष एवं विपक्ष से जुड़े दोनों लोगों को इसे पड़ना चाहिए .

नरेश शांडिल्य - पुस्तक 'इश्क  की खुशबू है सूफी'  के माद्यम  से  शशिकांत 'सदैव'  ने  सूफीवाद और  इश्क को बड़े ही बेहतरीन एवं विस्तृत ढंघ से सामने रखा है जिसे पड़कर आप परम के नए ही आस्वाद से सर्रबोर होने लगेंगे. एस पुस्तक से लोकिक जीवन को भी  अलौकिक बनाया जा सकता है।



तरुण विजय  - बहुत अतराल के बाद एक इसी पुस्तक पड़ने को मिली जो मन में प्रेम की उजास बिखेरती है .शशिकांत 'सदैव' ने  पुस्तक 'इश्क  की खुशबू है सूफी' से जो प्रयास किया है वह  इस युग की आवश्यकता है और कलम का धर्म है, यह पुस्तक हर घर में पड़ी जाय और विद्यालय के पाठ्यक्रम  में शामिल हो।



चित्र मुदगल   -  शशिकांत की  'स्त्री की कुछ अनकही ' कविताओं ने मुझे बहुत छुआ है. अचरज होता है कि किसी स्त्री की अन्तः चेतना के कुओं को, उसके तमाम गलियारों को इतनी  गहराई से किसी पुरुष ने अभिव्यक्त किया हो. यही हुनर शशिकांत की पेहछान है।





सरोजनी प्रीतम  - अंतस की गहराईयों तक पहुंची संवेदनाएं भी शब्द पा लें यह कम ही हो पता है. 'स्त्री की कुछ अनकही ' की हर कविता एक अनन्य अभिव्यक्ति है जिसमे हर स्त्री अपना सारा दर्द उमड़ता  पा लेगी।




सुरेश नीरव  -  पुस्तक 'कौन है ओशो' बूँद में सागर को जीने कि अलव्य उपलब्धि है. यह पुस्तक एक बीज से कल्पवृक्ष होते हुए ओशो के दर्शन करवाती है जिसमें शशिकांत 'सदैव' के शब्द निःशब्द झेन प्रार्थनाओं जैसे पवित्र लगते हैं और आहिस्ता आहिस्ता मौन में बदल जाते हैं। 
शशिकांत 'सदैव' शब्दों के धनी और अभिव्यक्ति के जादूगर हैं। इनकी गज़़लों को पढऩे के बाद ऐसा लगता है जैसे मन के भीतर कहीं अवसाद या निराशा के कुएं में कोई आदमी है जो पीड़ा से छटपटाकर बाहर आने को है और इनकी गज़़लें उसको एक सीढ़ी मुहैया कराती हैं। इनकी गज़़लों का जो तेवर है वह कहीं और नहीं देखा, वह शशिकांत 'सदैव' की रचनाओं में देखा है क्योंकि यह मैनेजमेंट के आदमी हैं। एक संतुलित व्यक्ति का जब संगीत आता है तब वह ऋचा बनता है, उपनिषद बनता है, वेद वाक्य बनता है। ऐसी चेतना के बिंदु पर जब कोई खड़े होकर कुछ रचता है तो वह अद्भुत और अद्वतीय होता है। जिन तुलसी छांव में शशिकांत 'सदैव' ने इन पुस्तकों को रचा है मैं उन क्षण- छांव को प्रणाम करता हूँ तथा चाहता हूँ कि वह इस क्षेत्र में एक नया नाम लेकर आएं क्योंकि 'सदैव' होना एक घटना नहीं, इतिहास है। 'सदैव' यानी जो नया है, पुराना है, अतीत एवं भविष्य है।


अरुण जैमानी  - शशिकांत सदैव ओशो को  लिखने के लिए चुनना अपने आप में एक चुनौती है. पुस्तक पड़ने  के बाद लगता है कि शशिकांत ने ओशो को नहीं बल्कि ओशो ने शशिकांत को चुना होगा क्योंकि ओशो को सही मायने में पकड़ पाना और अभिव्यक्त करना अपने आप में दुरूह काम है। 


आलोक पुराणिक - शशिकांत सदैव की यह पुस्तक, सफलता प्राप्त करने के गुन बड़ी ईमानदारी से बताती है। अच्छा इंसान कौन है तथा क्या है असली सफलता इस बात को तो विस्तारपूर्वक समझाती ही है साथ ही अच्छा इंसान सफल विजेता बनने के लिए क्या करे व क्या न करे इस बात को भी बड़ी सरल भाषा में व्यावहारिक रूप से स्पष्ट करती है।


राजेश चेतन  - कौन है ओशो शशिकांत सदैव क एक अध्बुत प्रयास है. यह पुस्तक एक विस्तृत चलचित्र के  ट्रेलर जैसी है जिसको देखकर दर्शक चलचित्र देखने को लालायित  हो जाता है . यह पुस्तक ओशो को अधिक जानने और पड़ने के लिए प्रेरित करेगी।




स्वामी चेतन्य कीर्ति  - शशिकांत सदैव के काम को देखकर व पड़कर हमेशा प्रसन्नता होती है क्यूंकि उसका काम या वास्तु किसी काम कि तरह नहीं होता बल्कि उसके ह्रदय का उदगार होता है. ओशो जैसे सम्म्बुध सदगुरु पर लिखना सरल काम नहीं उसके लिए ओशो जैसे महासागर में डूबना, मिटना और घुलना पड़ता है , शशिकांत ने इसे बड़ी सफलता पूर्वक किया है . मुझे ख़ुशी है कि जो भी काम मैं ओशो के लिए करना चाहता हूं, उसे शशिकांत बड़ी लगन से सफलतापूर्वक पहले ही कर चुके होते हैं।


माँ अमृत साधना  -  पुरुष होते हुए स्त्री के अवचेतन परतों कि तहों में प्रवेश कर उसके नज़रिए से देखना और महसूस करना , में तो अब तक मानती थी पुरुष  के लिए असंभव सा है लेकिन तुम्हारी कविताओं ने मुझे यह आशा बंधाई  है कि पुरुष भी संवेदनशील हो सकतें है और स्त्री के रहस्य  में पैठ सकतें हैं।


महेंद्र शर्मा  - शशिकांत 'सदैव' कि पुस्तक  'इश्क  की खुशबू है सूफी' निश्ची ही एक शोध पुस्तक है, कोई भी पाठक यदि इसे एक बार पड़ने लगे तो निश्ची ही इसमें डूबता जायगा।




दीक्षित दनकौरी  - शशिकांत सदैव कि सूफीवाद जैसे गूढ़ विषय पर सरल और  सहज भाषा शैली में लिखी यह पुस्तक     लोगों कि सोच और व्यवहार को नई दिशा देगी,लोग इसे पढ़कर उच्चतम आदर्शों कि ओर उन्मुक्ख होंगे  ऐसा मेरा विश्वास है,
 



इमरोज़  - 'पुस्तक कौन है ओशो' किसी राय या प्रतिक्रिया कि मोहताज नहीं यह अपने आप में ही पर्याप्त है, दिल से लकी गई यह पुस्तक बहुत ही पटरी कोशिश है. सच तो यह है जितने स्पष्ट और सच्चे ओशो हैं उतनी ही स्पष्ट और सच्ची यह पुस्तक है.



विज्ञानं  व्रत  -  इस प्रकार ओशो पर लिखने वाला या लिखा जाने वाला साहित्य मैंने पहले नहीं पड़ा था. शशिकांत 'सदैव' ने ओशो पर बहुत ही विषद विवेचन किया है, ओशो को आत्मसात करते हुए उसको समग्र रूप से इस पुसक में जब्त किया है.



गिरिराजशरण अग्रवाल  -  जिस उम्र में हम दर्द से जूझते  रह जाते हैं, उस उम्र में दर्द को शब्द देकर मरहम बनाने का प्रयास आपकी बेहतरीन काव्य शमता का प्रमाण है. यह मात्र कोरी कविताएं नहीं , उन सभी लोगों के लिए औशधि है, जो अपनी तन्हाई को अपनी आँखों में छुपाये रहते हैं.


निर्मलेंदु  -  कवि शशिकांत 'सदैव' ने अपने विरह रुपी वेदना को ख़ामोशी के आँगन में बैठकर कविगुरु रविन्द्रनाह ठाकुर कि तरह 'एकला चलो' कि तर्ज़ पर सविम को झेलने कि कोशिशि कि है. अद्भुत है यह कोशिश जिसमे सब कुछ शामिल है. कभी शशिकांत कि साधना को देखर प्रेरित हो जाता हूँ तो कभी उसकी मेहनत पर फक्र महसूस करता हूँ.


राज शेखर मिश्र   - नई पीढ़ी के कवि शशिकांत 'सदैव' की कविताएँ मौलिक हैं. दर्द  और करह से लबरेज़ साहसी कि कविताओं में नए मुहावरें हैं , दर्द को जीने और उसे अभिव्यक्त करने का हुनर है.




 वेद प्रकाश   - शशिकांत 'सदैव' कि रचनाओं के पीछे छिपा दर्द  आवाज़ देता है, जो रूह तक पहुँचता  है और गहराईयों में दफ़न दर्द कि परतें करवटें लेने लगती हैं , इनकी कविताएँ काबिले तारीफ़ हैं.




सईद अंसारी   -  कहने को सूफियों पर कई किताबें हैं लेकिन इतनी शोधित, विस्तृत  ओर बारीकी से लिखी  गई यह पुस्तक अपने आपमें नायब है।




स्वामी अगेह भारती   - शशिकांत 'सदैव' कि पुस्तक कौन है ओशो  बहुत ही उपयोगी पुस्तक है, एक बढ़ी जरूरत  को पूरा करती  है. इतना बड़ा कार्य आपने किया है कि उसके लिए प्रशंसा के  शब्द कम पढ़ जातें हैं . जितना पढो उतनी आँखें  कदम कदम पर आंसुओं से तर बतर हो जाती हैं।


आचार्य सुदर्शन जी महाराज   - शशिकांत 'सदैव' प्रखर प्रतिभा के उदीयमान कवि और लेखक हैं. आप लेखनी के जादूगर हैं.




धरम भारिया  - शशिकांत 'सदैव' कि रचनाओं को पढ़कर में एक ही बात कह सकता हूँ कि वह शब्दों के जादूगर हैं.

सतीश सागर   - शशिकांत 'सदैव' खुली आँखों  से दुनिया को देखने का प्रयास करतें हैं जो कि निश्चित रूप से महत्वपूर्ण बात हैं ईमानदारी  से रची गई उनकी कविताएँ आस्था जगातीं हैं, जिसे पाठक जुड़े बिना रह नहीं सकता.

धनंजय सिंह   - शशिकांत सदैव मन कि अनुगूंजो के कवि हैं. कविता उनके लिए जीवन कि ले के सामान है. जैसे सामान्य मनुष्य के जीवन मैं साँसों का उतार चड़ाव सहज गति से स्वमेव होता है वैसे ही कविता शशिकांत के साथ-साथ सांस लेती है .

डी. पी. बन्दुनी   - शशिकांत 'सदैव' कि 'स्त्री कि कुछ  अनकही' कि कविताएँ बेजोड़ हैं , वे व्यक्तिगत न होकर समष्टिगत हैं. रचनाओं को पढने के बाद लगता है कि स्त्री के बारे में कुछ भी अनकहा नहीं रह गया.

उर्मी सत्य भूषण  - शशिकांत 'सदैव' 'इश्क  की खुशबू है सूफी' सच्ची इबादत से उभरी है , 'सदैव' ने सूफी का विशलेषण दिल और दिमाग कि गहराईयों से किया है इसलिए यह ख़ुशबू एहसासों में भी गहरी उतरती है और सोचों  कि धरती पर बिछ गई है.

इंदु जैन   - शशिकांत सदैव आपकी कविताओं को पढने के बाद में यह कहे बिना नहीं रह सकती कि आपके द्वारा उठाये प्रशन बेहद महत्वपूर्ण   हैं . जो इन कवितों को पढ़ेगा वह सोच में जरूर डूबेगा और उसे रौशनी कि, समझ कि, सेंघ से उजाला भी मिलेगा.
  




 शशिकांत 'सदैव' कि कविताओं मन दर्द को अंतरतम में महसूस करना संभव है .स्त्री कि उनकाही  विवशता को कवि ने बखूभी ढंग से समझा व व्यक्त किया है .

 शशिकांत 'सदैव' की  रचनाएँ न केवल अछूते कोणो को संस्पर्श करतीं हैं बल्कि अपनी सरस व एकाकार कर देने वाली शैली में पाठक को अपने साथ  बहा ले जाती है. शायद इसी कारन में इनकी कविताओं में दार्शनिकता किसी भी रूप में बोझिलता का सबब नहीं बनती और वह कविता में घुल मिल जाती है.

      
   मन की गहराईओं की थाह पाना उतना ही दुरूह है जितना समुद्र की तलहटी से मोती निकलना. अंतस के इन्ही  मनोभावों को बड़े सूक्ष्म रूप से उकेरती हैं शशिकांत 'सदैव' की कविताएँ , जो दुःख देती नहीं दुःख बाँट लेती हैं. यह सभी मनुष्य को मांझने में मददगार हैं.


  ओशो को जानने व समझने में शशिकांत 'सदैव' की पुस्तक कौन है ओशो काफी सहायक है


 यथार्थ और संवेदना से लबरेज़ शशिकांत 'सदैव' की कविताएँ किसी स्वप्न लोक में नहीं ले जातीं  बल्कि खुद को खुद के करीब ले आतीं हैं. तन्हाई अवम शिकायतों से दूर खुद को खुद का हमसफ़र बनाकर ताउम्र जीना का जूनून देती हैं.

 शशिकांत 'सदैव' की कविताएँ ज़िन्दगी के बहुत नज़दीक हैं जो हर मनुषे को ज़िन्दगी के सही मायने समझती है जिसको शुतुरमुर्ग की तरह रेत में गर्दन धंसाकर झुटलाया नहीं जा सकता.


 भिन्न- भिन्न मन्हस्तिथियों की परिचायक  शशिकांत 'सदैव' की कवितायेँ हर दर्द के लिए दावा हैं, जिसमें सुलगते प्रेम की अभ स्पष्ट नज़र आती हैं.


सूफियों के रहस्यमई जीवन को जानने का एक माध्यम है शशिकांत 'सदैव' की पुस्तक 'इश्क की खुशबू है  सूफी' जिसके द्वारा न केवल सुफिओं के अंतर्जगत में प्रवेश किया जा सकता है बल्कि अंदर बेठे भगवान् के निकट हुआ जा सकता है.

शशिकांत 'सदैव' ओशो के जीवन के अन्तरंग पहलुओं को समेटते हुए एक मूल्यवान पुस्तक लिखी है 'कौन है ओशो' जिसमे ओशो के जीवन की खोजपूर्ण व्याख्या मिलती है साथ ही ओशो के जीवन से जुडी   कई जिज्ञासाओं  एवं प्रश्नों . का समाधान करती है यह पुस्तक.

 कवि शशिकांत 'सदैव' के पास एक स्त्री मन भी है जिसके माध्यम से वह नारी संसार से उसके स्तर पर गहरा संवाद स्थापित करतें हैं. कोई नारी भी अभी तक  इतनी  गहराई से स्त्री मन को अभिव्यक्त कर पाई है .


 पुस्तक 'इश्क की खुशबू है  सूफी'  के जरिये लेखक दरवेशों की आत्मा तक पहुँचने की कोशिश में गहरे तक उतर गया है  की आत्मा से ईश्वर के मिलन की यह परंपरा शब्दों की शक्ल में ढल गई  है.


 बहुआयामी व्यक्तित्व के माली ओशो को एक पुस्तक में समाहित करना संभव नहीं परन्तु पुस्तक 'कौन है ओशो' के ज़रिये लेखक शशिकांत 'सदैव' ने यह कर दिखाया है.


'कौन है ओशो 'यक़ीनन  एक विचारोत्तेजक  पुस्तक के रूप में हमारे सामने है. यह एक कठिन कार्य है क्योंकि  शशिकांत 'सदैव' एक विकत व्यक्तित्व को चुन रहें हैं, ओशो पर इतनी वैवध्य जानकारी इतने स्तरीयता के साथ आई है की लेखक को साधुवाद देना चाहिए.

ओशो को समझने के लिए गागर में सागर  है यह पुस्तक . ओशो पर अभी तक बहुत ही कम  शोध कार्य  हुआ है पर जितना भी हुआ है उसमें  शशिकांत 'सदैव' का यह प्रयास वास्तव में सबसे अलग एवं प्रशंसनीय है.


 मन की इतनी सूक्ष्म एवं गहरी अभिव्यक्तियाँ शायद ही कहीं पढने को मिलें. शशिकांत 'सदैव' की किताबों को पड़ना अपनाप  में निर्भार होना  है.



शशिकांत 'सदैव' का ओशो पर किया गे काम वास्तव में बेजोड़ है.