किसी हीरे से कम नहीं मेरे जीवन की दास्ताँ
हसीन है कितना मगर गिना पत्थर मैं जाता है/
प्रिय मित्रों बानगी के
तौर पर हाज़िर
है मेरी कुछ
अधूरी गज़लें, जिन्हें
आप पूरा पढ़
सकतें हैं मेरे
गजल संग्रह 'तेरे
साथ की आदत'
में।पुस्तक मंगवाने के लिए
आप अपना पता
फोन नंबर सहित इस Id पर mail करें।
1
तेरे साथ की
आदत तेरे साथ
न गई
आज भी बातों
में मेरी तेरी
बात न गई।
न चाय वाला
है वहां न
भीगने का मौसम
पर आज तक
उस टीन से
बरसात न गई।
गोदी में रखके
सर को जो
थामी थी उंगलियां
उन उंगलियों की उंगलियों
से छाप न
गई।
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2
है बहुत अजीब
मगर यह सच
बात है
मैं साथ हूं
उसके जो खुद
मेरे खिलाफ है।
होता कोई दुश्मन
तो साथ उसका
छोड़ देते
पर ज़ख्म देने वाला
भी कोई मेरा
खास है।
रोने की बात
पर भी ये
रोती नहीं आंखें
मजबूरी है इनकी
कोई या फिर
रिआज़ है।
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3
सही तो जाती
है मगर, कही
नहीं जाती
मजबूरियां
मुझे छोड़कर कहीं
नहीं जाती।
जागती हैं जरूरतें
जो रात भर
सिरहाने
वो बोलकर जुबान से
मांगी नहीं जाती।
ये जि़न्दगी है जि़न्दगी
जीनी ही पड़ती
है
हो बुरी कितनी
मगर छोड़ी नहीं
जाती।
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4
कागज़ से मिलकर
कलम कई बार
रोई है
लगता है इसको
जि़न्दगी में मेरे
नज़दीक कोई है।
रोने से निकला
न उससे मिल
के ही निकला
इस दर्द ने
न जाने कैसी
उम्मीद बोई है।
दूर रहकर घुट
रहे थे वो
ही ठीक था
साथ रह कर
चुभ रहे हैं
बात वो ही
है।
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5
आटे में नौन
कम था सो
आंसू मिला लिया
आंच का बहाना
बनाकर आंसू छिपा
लिया।
भरे हुए गले
में जब उतरा
न एक कौर
तूने फिर उपवास
का बहाना बना
लिया।
गाती नहीं हैं
चूडिय़ां आंगन में
गीत कोई
खांसी के तेरे
शोर ने सब
कुछ दबा लिया।
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6
नसीब से नहीं मुझे तुझसे शिकायत है
ये हाल है जो मेरा वो तेरी बदौलत है।
बीनती रहती है सन्नाटे में लफ्ज़ों को
खामोशियों की मेरी ये कैसी ज़रूरत है।
टटोलती रहती है जाने उम्मीद मुझमें क्या
इतनी बेसब्री से इसको किसकी चाहत है।
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7
प्यार की किस हद का ये कैसा सबूत था
मेरे खिलाफ फैसला मुझको मंजूर था।
अपनी फ़िक्र से अधिक मुझे जिसकी फ़िक्र थी
उसी की जि़न्दगी में मेरा सिफर वजूद था।
दूरियां और चुप्पियां समझा गयीं मुझे
लौटकर जाना मेरा उस तक फिजूल था।
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8
वो मोगरे सा महकता रहा, मैं छुईमुई सी लजाती रही
उसकी बांहें, बांहों में मेरी रात भर नहाती रही।
वो घूंट-घूंट देखता रहा, मैं बूंद-बूंद सरकती रही
हौले-हौले से ही सही, मैं खुद को हवाले करती रही।
बंद पलकों पर मेरी जब उसने होंठ अपने रखे
अटकी हुई एक सांस मेरी मुझे देर तक मनाती रही।
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9
उसको मेरी याद आई मुझसे बिछड़ जाने के बाद
ख़ामोशी के मतलब निकले सालों चुप रहने के बाद।
जो मुझको कहता था हर दम कि मेरा अपना है
उसने मेरी मर्ज़ी पूछी अपने मन की करने के बाद।
मुझे पता है मुझसे पूछो मुझपे क्या कुछ बीती थी
मैंने खुद को कैसे मनाया उसके ठुकराने के बाद।
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10
वो तोड़ चुका है फिर भी टूटती नहीं है
उम्मीद है ये यूं ही छूटती नहीं है।
टिकती है किस पे क्यों खुद ही न जाने
बस लगती ही जाती है थमती नहीं है।
गंवाएगी कितना और पायेगी क्या ये
लगने से पहले कभी सोचती नहीं है।
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11
एक वही है जो मेरे रोने पर हंसता नहीं है
वो आईना है मुझे भूल से भी डसता नहीं है।
बिना बोले भी वो पढ़ लेता है चेहरा मेरा
बुरा हो कितना मगर ताना कोई कसता नहीं है।
कभी तो तू भी पूछ लिया कर मुझसे हाल मेरा
क्यों मुझको देखकर ये दिल तेरा करता नहीं है।
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12
मैं वही हूं जिसने तुम्हें कभी चाहा था बहुत
किसी खुदा से भी ज्यादा तुम्हें पूजा था बहुत।
मुहब्बत एक तर$फा है जब ये जाना मैंने
जुबां खामोश रही दिल मेरा टूटा था बहुत।
उसी के नाम के बसे हैं मेरी आंखों में आंसू
जिसके माथे को कभी शौक से चूमा था बहुत।
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13
कम से कम उन वादों को निभाने तो आओ
उलझे पड़े उन लम्हों को सुलझाने तो आओ।
एक बार में चल देंगे हम जहां चलने को कहोगे
झूठे मुंह से ही सही पर बुलाने तो आओ।
फ़िक्र मत करना कि मुझको कैसा लगेगा
जी खोलकर तुम दिल मेरा दुखाने तो आओ।
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14
मंजि़ल नहीं किस्मत में मेरे रास्ते रहे
किसी और के नहीं हम खुद के वास्ते रहे।
खाली हुए तेरे बिना हम इतना इस कदर
कि अपनी हर मसरूफ़ियत को नापते रहे।
वो था बुरा बेशक़, पर उसमें कुछ तो बात थी
कि उसके हिसाब से हम खुद को ढालते रहे।
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15
मेरी ये प्यास ही मुझको कहीं जला न दे
मेरी मजबूरियां मुझको कहीं मना न दे।
जकड़ के रखा है मैंने शबाब को अपने
मेरी गिरफ्त ही मुझको कहीं बहा न दे।
निकल न जाऊं मैं किसी रास्ते पर ऐसे
जहां के रास्ते मुझको मेरा पता न दे।
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16
मुझसे बहुत दुखी थी मगर फिर भी लाड़ करती रही
काली थी सूरत मेरी पर वो मुझे लाल कहती रही।
छन्न से बिखरी थीं जो वो महज़ अठन्नियां नहीं थीं
उम्मीदें थीं जिन्हें जोड़कर वो गुल्लक में रखती रही।
जाने कब बेची थीं उसने अपनी शादी की चूडिय़ां
वो तो हमेशा बात मेरे सपनों की ही करती रही।
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17
उसे रूठना आता था उसने रूठ कर दिखा दिया
एक तरफ़ा था रिश्ता मेरा बिना बोले जता दिया।
बहाना है और कुछ नहीं न बोलने का मुझसे
बेवजह की बातों को उसने बे-इंतहां बढ़ा दिया।
मुझको ही ज़रूरत है उसकी उसको मेरी नहीं
सालों के इंतज़ार ने मुझको ये भी सिखा दिया।
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18
जनको मैंने अपना समझा निकले वो बेगाने हैं
साथ न दे पाने के सबके अपने-अपने बहाने हैं।
कोई मेरा अपना ही होगा $गैर नहीं वो हो सकता
अपने ही तो अपनों पर झूठे इल्ज़ाम लगाते हैं।
खुलकर ही बरसेंगे एक दिन जिस दिन भी बरसेंगे
लदे-पड़े हैं आंखों में मेरी सदियों से कई ज़माने हैं।
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19
बिना किसी सवाल के ये कैसा जवाब है
जब से वो अलग हुआ है तभी से साथ है।
वो छोड़ कर चला गया मुझे इसका गम नहीं
कुछ बोल कर गया नहीं इस का मलाल है।
क्या था हमारे दरमियां जो इतने दिन रहा
दूरियां उसकी खड़ी अब करती सवाल है।
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20
आईना देखकर ये मैंने लिखा था
मैं टूटा हुआ था पर फिर भी टिका था।
मुकद्दर भी देखो मेरी गु$फ्तगू का
खुद ही कहा और खुद ही सुना था।
भले ये दिखाता हो तस्वीर सच्ची
क्या इसने सहा है, जो मैंने सहा था।
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21
खो आया हूं खुद को वहां जहां पर कभी रहा नहीं
मैं उसका होकर आ गया हूं जिसका मुझे पता नहीं।
बना मिले उस मुलाकात का इतना गहरा था असर
आज तक ये दिल किसी का उसके अलावा हुआ नहीं।
हो सकता है प्यार दुनिया शायद इसी को कहती है
फ़िक्र में घुलता हूं उसकी जिसको मेरा कुछ पता नहीं।
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22
मां के जीवन में कोई इतवार नहीं होता
छुट्टी वाला आज़ादी का त्योहार नहीं होता।
घर संभालती है तो कभी बच्चों को पालती है
चैन से जीने का उसको अधिकार नहीं होता।
रखती है हर रिश्ते को उसकी हर सही जगह
प्यार में उसके थोड़ा भी व्यापार नहीं होता।
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23
गम चुपचाप अकेले पीना था
मुझे उससे बिछड़ कर जीना था।
मेरे लम्हों ने यादों से मुझको
जाने क्या सोचकर बीना था।
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24
जो बात बोलना ज़रूरी है
वो बात आज भी अधूरी है।
किसी भी नाप में नहीं आती
बड़ी बारीक सी ये दूरी है।
दिल दुखाता है वो जानकर मेरा
या फिर उसकी कोई मजबूरी है।
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25
कभी गज़ल कभी कविता
तो कभी रुबाईयां
न जाने किस-किस
में कैद हैं मेरी तन्हाइयां।
किससे खफा हुई हैं
जाने ये मेरी मजबूरियां
कि मुझसे भी नहीं
बोलती हैं मेरी खामोशियां।
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26
अपनी लिखी किताब में छूटा हुआ हूं मैं
हर पूरी $गज़ल में अधूरा रहा हूं मैं।
मिलती है यूं तो राहत हर किताब को लिख के
पर हर बंटे पन्ने में खुद कितना बंटा हूं मैं।
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27
पुराना याद इतना रहा, नया कुछ हो नहीं पाया
खुद के साथ इतना रहा, किसी का हो नहीं पाया।
कौन छोड़ गया है मुझको न जाने मेरे पास
क्यों आज तक मैं खुद से जुदा हो नहीं पाया।
किसी और की नहीं मुझे खुद की ज़रूरत है
मेरे सिवा कोई मेरी दवा हो नहीं पाया।
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28
कभी तो ये कमाल
हो जाये
कि तू मेरी ज़बान
हो जाये।
मैं एक उलझी हुई
पहेली हूं
काश तू मेरा जवाब
हो जाये।
तू जो ले-ले जुबां
से नाम मेरा
मेरा इतने में काम
हो जाये।
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29
ये क्या लिखवा गई मेरी तन्हाई मुझसे
मैं तन्हां हूं बहुत यह कह गई मुझसे।
पढ़ता हूं अपने शेर तो मालूम होता है
आज तक लिपटी हुई है उसकी जुदाई मुझसे।
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30
देख लो हालत मेरी हम खुद ही हैं गवाह
लिहाज़ करते-करते हम खुद हो गए तबाह।
इस कदर भटकाया है मेरी प्यास ने मुझको
अपने ही जिस्म में मुझे मिलती नहीं पनाह।
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30
कहने को दर्द मिट गया पर रोग बाकी है
मेरे सीने में अभी एक बोझ बाकी है।
रह-रह के मुझमें गूंजती है बरसों की तन्हाई
खामोशियों में जाने किसका शोर बाकी है।
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32
उसका हमने यूं होकर देखा
उसके बदले का रोकर देखा।
क्या था मैं उसके जीवन में
उसने मुझको ये खोकर देखा।
पानी से नहीं छिपते आंसू
हमने आंख को धोकर देखा।
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33
जितने भी रिश्ते रहे, सब कलम से रिसते रहे
गज़ल का बहाना बनाकर, पन्नों पर बिछते रहे।
उम्मीदों ने मेरी मुझे, कुछ इस कदर मनाया
जानकर भी फासला, हम साथ में रहते रहे।
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33
मैं हर तरह से तेरा हूं, तू चाहे जहां से जांच ले
मैं हर तरफ से तेरा हूं, तू चाहे जहां से छांट ले।
मैं भले सागर नहीं, एक छोटी सी ही बूंद हूं
मुझमें भी है वो गहरापन, चाहे जहां से झांक ले।
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34
लोग कहते हैं हमें लिखना नहीं आता
गज़ल उठाने का सलीका नहीं आता।
कहीं रदीफ गड़बड़ है तो कहीं काफ़िया गुम है
छांट कर खुद को लुगत से लिखना नहीं आता।
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35
मुझे भूलने वाला भी कभी याद करेगा
मेरा कोई तो लम्हा मुझे आबाद करेगा।
रंग लाएगी ठोकर मेरी उम्मीद है मुझको
कोई घाव ही मेरा मुझे फिर ईज़ाद करेगा।
दुश्मनों का खौफ था वो भी नहीं रहा
कोई अपना ही मेरा मुझे बर्बाद करेगा।
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36
सपने थे सपने हैं और सपने ही रह गए
नाम को ही नाम के सब अपने ही रह गए।
जिन्होंने मुझको काटकर निकाला था रास्ता
मंजिलों पर पहुंचकर वो अकेले ही रह गए।
क्या कहूं क्या सोचकर मुझे उसने छोड़ा था
उत्तर तो दूर सवाल भी अधूरे ही रह गए।
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37
ये कैसी तकदीर हुई
एकतरफा तकलीफ हुई।
गुनाह था दोनों का पर
सजा मुझे तकमील हुई।
रुके-रुके तेरी ताक में
आंख मेरी तस्वीर हुई।
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38
देख तो यादों ने तेरी क्या-क्या गुल खिलाए
आंसू भी मेरी आंख से अकेले निकल आए।
पन्ने पलट देने से पाठ $खत्म नहीं होता
किताब में सूखा हुआ जब फूल मिल जाए।
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39
क्यों किसी के साथ वो रहता नहीं जऱा
क्या उसे तन्हाई से डर, लगता नहीं ज़रा।
खोया है किसकी याद में, वो इतनी बुरी तरह
गर बैठ जाये एक बार तो, उठता नहीं ज़रा।
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